खुद को तुम ऐसे गढ लेना

खुद को तुम ऐसे गढ़ लेना
जैसे प्रेरक कोई कहानी सी

आँखों में सपने भर लेना
दिल में हो सीख पुरानी सी

नाम क्षितिज पर लिख देना तुम
जैसे कोई अमिट निशानी सी

शीर्ष पर स्नेहिल हो जाना
जैसे कोई शाम सुहानी सी

खुद को तुम ऐसे गढ़ लेना
जैसे प्रेरक कोई कहानी सी

मृगनयनी सा प्रेम ह्रदय में
पर भुजाएँ हों क्षत्राणी सी

बात अगर अस्मत पर आये
बन उठना तुम थोला तूफ़ानी सी

त्याग करो तो पन्ना जैसा, और
युद्ध लड़ो तो आशा गुर्जरणी सी

खुद को तुम ऐसे गढ़ लेना
जैसे प्रेरक कोई कहानी सी !

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